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बतूता का जूता (बाल-साहित्य ) |
Author: सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।
कभी नाक को कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता।
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुंचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गये
मोची की दुकान में।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना