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धनतेरस | धनतेरस का पौराणिक महत्व (विविध) |
Author: भारत-दर्शन संकलन
कार्तिक मास में त्रयोदशी का विशेष महत्व है, विशेषतः व्यापारियों और चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के लिए यह दिन अति शुभ माना जाता है।
दीवाली से दो दिन पूर्व धनतेरस व धन्वंतरी जयंती मनाई जाती है। महर्षि धन्वंतरि को आयुर्वेद व स्वस्थ जीवन प्रदान करने वाले देवता के रूप में भी पूजनीय है, जैसे धन-वैभव के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं, उसी प्रकार स्वस्थ जीवन के लिए स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि की आराधना की जाती है।
धनतेरस की सायंकाल को यमदेव निमित्त दीपदान किया जाता है। ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है। मान्यता है कि यदि गृहलक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरे परिवार को रोग-मुक्ति मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है।
इस दिन पीतल और चाँदी खरीदने चाहिए क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी की धातु है। पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्यलाभ प्राप्त होता है।
व्यापारी वर्ग इस दिन नए बही-खाते खरीदता है और इन्हें गद्दी पर स्थापित करते है। तत्पश्चात् दीवाली पर इनका पूजन किया जाता है। लक्ष्मीजी के आह्वान का भी यही दिन होता है।
देवताओं के वैद्य माने जाने वाले धन्वन्तरी, चिकित्सा के भी देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए भी धनतेरस का विशेष महत्व है। आयुर्वेद चिकित्सक अपने चिकित्सालाय पर धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव की विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। पुरातनकाल से अधिकांश आयुर्वेदिक औषधियों का इसी दिन निर्माण किया जाता है व साथ ही औषधियों को आज के दिन अभिमंत्रित करने का भी प्रचलन है।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी परंपरा है। चाँदी को चन्द्रमा का प्रतीक मानते हैं जो शीतलता प्रदान करती है जिससे मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। चाँदी कुबेर की धातु है। इस दिन चाँदी खरीदने से घर में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा में वृद्धि होती है।
धनतेरस की साँय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आँगन में दीप जलाए जाते हैं और इसी के साथ दीवाली का शुभारंभ होता है।
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