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ग़ज़ल (काव्य) |
Author: शुकदेव पटनायक 'सदा'
प्यासी धरा और खेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
अब सत्य के संकेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
मिटकर भी दिल से मिट न पाएगा मेरा लिक्खा
बहती नदी की रेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
रंगीनियों के सत्य को भी जान ले दुनिया
कालिख़ छुपाए श्वेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
अब तक जिसे वश में न कर पाया कोई मंतर
आतंक के उस प्रेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
जहाँ धर्म हो बाज़ार और पाखंड बिकता हो
अभिशप्त उस साकेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
- शुकदेव पटनायक 'सदा'
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