भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

अजीब क़िस्म का अहसास (काव्य)

Author: ज्ञानप्रकाश विवेक

अजीब क़िस्म का अहसास दे गया मुझको
वो खेल-खेल में बनवास दे गया मुझको

लगा गया मेरे माथे पे रोशनी का तिलक
वो दिन निकलने का विश्वास दे गया मुझको

वो आसमान का शायद डकैत बादल था
जो अश्क लेके मेरे प्यास दे गया मुझको

पराई चिट्ठी किसी की, थमा के हाथों में
कि झूठी-मूठी कोई आस दे गया मुझको

वो प्रीतिभोज की आया था दावतें देने
अजीब बात है उपवास दे गया मुझको

- ज्ञानप्रकाश विवेक

[साभार - ग़ज़लें रंगारंग]

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