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और मानवता सिसक उठी (कथा-कहानी) |
Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'
राज्य में आंदोलन चल रहा था।
'अच्छा मौका है। यह पड़ोसी बहुत तंग करता है। आज रात इसे सबक सिखाते हैं।' एक ने सोचा।
'ये स्साला, मोटर बाइक की बहुत फौर मारता है। आज तो इसकी बाइक गई!' एक छात्र मन में कुछ निश्चय कर रहा था।
'सामने वाले की दूकान बहुत चलती है...आज जला दो। अपना कम्पीटिशन ख़त्म!' दुकानदार ने नफ़े की तरकीब निकाल ली थी।
'देखो, कुछ दुकानें, कुछ मकान, कुछ बसें फूक डालो। सिर्फ विरोधियों की ही नहीं अपनी पार्टी की भी जलाना ताकि सब एकदम वास्तविक लगे।' नेताजी पार्टी कार्यकर्ताओं को समझा रहे थे।
फिर चोर-उचक्के, लूटेरे कहाँ पीछे रहते! आंदोलन के नाम पर हर कोई अपनी रोटियां सेंकने में लग गया था। आंदोलन दंगे में बदल चुका था।
मानवता तार-तार होकर कहीं दूर बैठी सिसक उठी।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'