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जो दीप बुझ गए हैं (काव्य) |
Author: दुष्यंत कुमार
जो दीप बुझ गए हैं
उनका दु:ख सहना क्या,
जो दीप, जलाओगे तुम
उनका कहना क्या,
सुधि की हथेलियों पर
चिंतित माथा न धरो,
जो दीप जल रहे हैं
अब उनकी बात करो ।
-दुष्यंत कुमार