जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 

हिन्दी गान  (काव्य)

Author: महेश श्रीवास्तव

भाषा संस्कृति प्राण देश के इनके रहते राष्ट्र रहेगा।
हिन्दी का जय घोष गुँजाकर भारत माँ का मान बढ़ेगा।।


हिन्दी का अमृत ओंठों पर, वाणी में हो उसका वंदन।
मन में, लेखन में हिन्दी हो, प्रेम भाव हो और समर्पण।।


भारत में जन्मी हर भाषा, जननी का अंतर्मन पहने।
हिन्दी की बहनें प्यारी सब, भारत माता के गहने।।


हिन्दी भाषा के गौरव से, युवा सभी ऊर्जामय होंगे।
देवनागरी होगी व्यापक, कम्प्यूटर हिन्दीमय होंगे।।


शुरू स्वयं से करें त्याग दें, हीन ग्रन्थि से भरा मन।
भर दें हिन्दी भाव भक्ति से, पूरे भारत का जन गण मन ।।
भारत संस्कृति प्राण देश के......

- महेश श्रीवास्तव

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश