हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

धरती बोल उठी (काव्य)

Author: रांगेय राघव

चला जो आजादी का यह
नहीं लौटेगा मुक्त प्रवाह,
बीच में कैसी हो चट्टान
मार्ग हम कर देंगे निर्बाध।

मृत्यु की महराबों से गूँज
शहीदों की आती आवाज,
रक्त से भीगे झण्डे फहर,
उठाते हैं अपनी तलवार॥

#

डायन है सरकार फिरंगी,
चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का हाँ,
कौर दुरंगी घातों से ।

हरियाली में आग लगी है,
नदी-नदी है खौल उठी,
भीग सपूतों के लहू से
अब धरती है बोल उठी॥

इस झूठे सौदागर का यह
काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस,
यही एक हुंकार उठे !

-रांगेय राघव

 

 

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश