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उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो (काव्य) |
Author: जी.एस. ढिल्लों
उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो
आजा़दी यूँ लेते हैं जवाँ, ले के दिखा दो
खूँखार बनो शेर मेरे हिन्दी सिपाही
दुश्मन की सफ़े तोड़ दो एक तहलका मचा दो।
आ हिन्द के बदल में उदू चीज़ ही क्या है
ग़र रास्ते में हो भाई, उसे मार गिरा दो।
मीनारे-कुतुब देखता है राह तुम्हारी,चल,
उसकी बुलन्दी को तिरंगे से सजा दो।
कर याद शहीदों का लहू देश की खातिर
एक-दो भी दुश्मन को हजा़रों से लड़ा दो।
क्यों लाल किला यूँ रहे दुश्मन के हवाले
हर लश्करे-हिन्दी की वहाँ धूम मचा दो।
हो भूख, हो तकलीफ़, रुकावट हो थकावट
वहाँ जख्म गिरा मौत को भी हँस के दिखा दो।
और कोई ख्वाहिश है न तमन्ना मेरे दिल में,
आजाद वतन हिन्द में जय हिन्द बुला दो।
- जी.एस. ढिल्लो [आज़ाद हिंद फौज के क़ौमी तराने]