भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

कुछ सुन रहा था | कविता (काव्य)

Author: अरविंद सैन

कुछ सुन रहा था
लगा कुछ खनक रहा था
पर विश्वास था
कि आडे आ रहा था
जुनून था
कि अपने होने का अहसास करा रहा था

आंखे देख नही पा रही थी
कि धुंध हटने क नाम नही थी
इन्ही सब के बीच थी
जिन्दगी मेरी
जो मुझ से कुछ कह रही थी

- अरविंद सैन

 

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