भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ | ग़ज़ल (काव्य)

Author: सूबे सिंह सुजान

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ, बदल जाऊँगा
आज मैं बर्फ हूँ कल आग में जल जाऊँगा

सर्दियों में मैं समन्दर की तरफ भागूँगा
गर्मियों में मैं पहाडों पे निकल जाऊँगा

आपका प्यार बरसने लगा मुझ पर लेकिन,
आप बदलो या न बदलो मैं बदल जाऊँगा

लोग पर्वत मुझे कहते हैं मगर मेरी सुनो,
तुम मुझे काटते हो तो मैं भी ढल जाऊँगा

एक क़ाग़ज हूँ मुझे फिर से भिगोया जाये
ठोकरें खा के महब्बत में सँभल जाऊँगा

- सूबे सिंह सुजान
subesujan21@gmail.com
मोबाईल न. 09416334841

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश