वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।
 

कौआ और लोमड़ी (बाल-साहित्य )

Author: अज्ञात

एक बार एक कौए को एक रोटी मिली। लोमड़ी ने सोचा क्यों न मैं इस कौए को मूर्ख बनाकर रोटी ले लूँ।

लोमड़ी बोली - कौए भाई तुम इतना अच्छा गाते हो! मुझे भी एक गाना सुनाओ।

कौए ने जैसे ही गाने के लिए मुँह खोला, रोटी नीचे गिर गई।

लोमड़ी रोटी लेकर चली गई।

 

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