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हिंदी भाषा की समृद्धता (विविध) |
Author: भारतेन्दु हरिशचन्द्र
यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के) लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा । तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें ।
सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है ।
- भारतेन्दु हरिशचन्द्र