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क्या मैं गूँगा, बहरा और अंधा हो जाऊं | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'
क्या मैं गूँगा, बहरा और अंधा हो जाऊं
थोड़ी देर ऊबल कर कैसे ठंडा हो जाऊं?
मीठी-मीठी बातें उनकी जहर-सी लगती हैं
उनसे हाथ मिलाकर कैसे गंदा हो जाऊं?
दिल पर ज़ख़्म लगाने वाले हाल पूछते हैं
पल भर में बोलो तो कैसे चंगा हो जाऊं?
मेरी रोशनी आकर कोई चाँद चुराता है
सूरज हूं मैं 'रोहित' कैसे मंदा हो जाऊं?
- रोहित कुमार 'हैप्पी'