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उत्प्रवासी (काव्य) |
Author: मोहन राणा
महाद्वीप एक से दूसरे तक ले जाते अपनी भाषा
दुनिया और किसी अज्ञात के बीच एक घर साथ
ले जाते आम और पीपल का गीत
ले जाते कोई ग्रीष्म कोई दोपहर
ले जाते सूटकेस में गठरी एक साथ,
बाँध लेते अजवाइन का पराँठा भी सफर के लिए
लेते जाते अपने पुरचनियों का एक सपना जीते
लंबी रात जिसकी और दिन उनींदा
- मोहन राणा
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* पुरचनियों - पुरखे