Important Links
घर | कविता (काव्य) |
Author: मोहन राणा
धरती कर सकती है मिटा सकती है भूख सबकी
पर तृप्त नहीं पाती लालसा एक इन्सान की कभी
कभी मैं देखता इस ओर कभी उस पर जैसे कुछ भी नहीं
एक भीड़ के बीच से गुजरते हर रोज़ की तरह किसी मतलब से निकला
कहीं पार हो जायें बनें कोई निशान किसी को याद आए
मैं तलाशता हूँ घर अपना किसी भूगोल में जहाँ वह पता नहीं है
-मोहन राणा
#