भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

आप के एहसान नीचे | ग़ज़ल (काव्य)

Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

आप के एहसान नीचे दब मरें क्या?
आदमी से हम तुम्हें अब रब कहें क्या?

हाँ, जो दुनिया कर रही है, कर रही है
है जरूरी अब उसे हम सब करें क्या?

आयेगी जब मौत तब मरना है लाजिम
जीते जी हम मौत से हरदम डरें क्या?

आपने इक पल सहारा दे दिया जो
जिंदगी भर उसका हर्जाना भरें क्या?

   - रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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