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मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'
मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं
मैं जहां रहता था अब वो घर नहीं, बस्ती नहीं।
सब यहां उदास, माथे पर लिए फिरते शिकन
अब किसी चेहरे पे दिखता नूर औ' मस्ती नहीं।
ना कोई अपना बना, ना हम किसी के बन सके
इस शहर में जैसे अपनी कुछ भी तो हस्ती नहीं।
तेरी तरह हो जाऊं क्यों, भी़ड़ में खो जाऊँ क्यों
शख्सियत 'रोहित' हमारी इतनी भी सस्ती नहीं।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'