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सपनों को संदेसे भेजो (काव्य) |
Author: बृज राज किशोर 'राहगीर'
सपनों को संदेसे भेजो,
ख़ुशियों को चिट्ठी लिखवाओ।
उनकी आवभगत करनी है,
मुस्कानों को घर बुलवाओ॥
बचपन के मासूम दिनों को,
दोबारा जी करके देखो।
जो उस समय नहीं कर पाए,
आज उसे भी करके देखो।
उन्हीं क्षणों का सुख पाने को,
कभी-कभी बच्चे बन जाओ॥
इन शहरों में एक मशीनी
जीवन जीना सीख गए तुम।
एक छलकते घट जैसे थे,
जाने कैसे रीत गए तुम।
अहसासों के पनघट पर जा,
फिर अपनी गागर भर लाओ॥
सम्बन्धों के वीराने में,
सिमटे-सिमटे क्यों रहना है?
जीवन तो बहती नदिया है,
सब विद्वानों का कहना है।
रिश्तों के मुरझाते वन में,
इस जल की धारा पहुँचाओ॥
-बृज राज किशोर “राहगीर”
ईशा अपार्टमेंट, रुड़की रोड, मेरठ (उ.प्र.)-2
ई-मेल : brkishore@icloud.com