बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
 

सत्य-असत्य में अंतर (काव्य)

Author: शरदेन्दु शुक्ल 'शरद'

मैंने चवन्नी डाली
जैसे ही आरती की थाली
सामने आई,
बाजू वाले ने
हमें घूरते हुए
सौ का पत्ता डाला
और छाती फुलाई!
तभी पीछे से किसी ने कहा,
सेठजी
घर में छापा पड़ गया है,
शहर में इज्जत का
जनाज़ा निकल गया है,
उसने चोर आंखों से
हमें देखा,
उसकी निगाह
शर्म से गड़ रही थी,
और अब मेरी चवन्नी
सौ पे भारी पड़ रही थी।

-शरदेन्दु शुक्ल 'शरद'
[हास्यस्पद से]

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