बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
 

तिरुवनामालै : पवित्र और आध्यात्मिक स्थल  (विविध)

Author: डॉ एस मुत्तु कुमार

भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है तिरुवनामलै। यह पवित्र स्थल चेन्नई से लगभग 192 किलोमीटर की दूरी पर है। यह शिवजी के पंच भूत स्थलों में अग्नि स्थल के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव की पूजा भूतनाथ के रूप में भी की जाती है। भूतनाथ का अर्थ है ब्रह्मांड के पाँच तत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के स्वामी। इन्हीं पंचतत्वों के स्वामी के रूप में भगवान शिव को समर्पित पाँच मंदिरों की स्थापना दक्षिण भारत के पाँच शहरों में की गई है। ये शिव मंदिर, भारत भर में स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समान ही पूजनीय हैं। इन्हें संयुक्त रूप से पंच महाभूत स्थल कहा जाता है। यह पवित्र स्थल कई सिद्धों-योगियों से जुड़ा हुआ है और वर्तमान काल में अरुणाचल की पहाड़ियाँ है। यह 20वीं सदी में गुरु रमण महर्षि का निवास स्थल रहा है।



यह आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चर्चित है और इस स्थल में शिव जी का नाम अरुणाचलेश्वर और पार्वती जी का नाम उन्नामुल्लैयार है। यह मंदिर चोल वंश के राजाओं के द्वारा निर्मित है। लगभग 24 एकड़ क्षेत्रफल में अपने विस्तार के कारण यह भारत का आठवाँ सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। मंदिर के निर्माण के लिए ग्रेनाइट एवं अन्य कीमती पत्थरों का उपयोग किया गया है।

कुल मिलाकर, तिरुवन्नामलाई एक समृद्ध आध्यात्मिक विरासत और चमत्कारी घटनाओं के लंबे इतिहास वाला शहर है। अन्नामलाईयार मंदिर और अरुणाचल पहाड़ी दोनों महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र हैं, और वार्षिक गिरिवलम एक शक्तिशाली आध्यात्मिक अभ्यास है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें भाग लेने वालों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

इस मंदिर के परिसर में पाँच शिव मंदिर है जिसमे भूमि, जल, वायु, आकाश और अग्नि शामिल हैं। इस मंदिर के चारों ओर चार बड़े गोपुरम हैं। जिसमें मुख्य द्वार के गोपुरम को राज गोपुरम कहा जाता है। इसकी ऊँचाई लगभग 217 फुट है और यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा प्रवेश द्वार है। इस पवित्र स्थल में साल में चार बार ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध ब्रह्मोत्सव तमिल वर्ष के कार्तिक महीने ( नवम्बर / दिसम्बर ) में पड़ता है। दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के अंतिम दिनों में कार्तिक पूर्णिमा के कार्तिक नक्षत्र के दिन शाम को छह बजे अन्नामलै पहाड़ के छोर पर दीपक ( दिया ) जलाया जाता है, जो दस दिनों तक जलता रहता है। शिव जी अग्नि रूप में भक्तो के रूप में दर्शन देते है। यही नहीं हर महीने पूर्णिमा के दिन शाम को एक लाख से अधिक भक्तजन इस अन्नामलै पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जो 14 किलोमीटर की है। इस पर्वत के चारों ओर अष्टलिंगम शिव की मूर्ति है जिनमें 1 इंदिरालिंगम, 2 अग्निलिंगम, 3 यम लिंगम, 4 निरुधि लिंगम, 5 वरुण लिंगम, 6 वायु लिंगम, 7 कुबेर लिंगम, 8 ईशान लिंगम इत्यादि सम्मिलित हैं। इन शिवलिंगों के दर्शन करना अत्यंत पवित्र माना गया है। मंदिर के गर्भगृह में 3 फुट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है, जिसका आकार गोलाई लिए हुए चौकोर है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को लिंगोत्भव कहा जाता है और यहाँ भगवान शिव अग्नि के रूप में विराजमान हैं, जिनके चरणों में भगवान विष्णु को वाराह और ब्रह्मा जी को हंस के रूप में बताया गया है। हिन्दू धर्म में धूम धाम से मनाए जाने वाले महा शिवरात्रि का त्योहार की शुरुआत भी इसी पवित्र स्थल से माना जाता है।

यहाँ कई अन्य आध्यात्मिक प्रथाएं हैं, जो तिरुवन्नामलाई और अन्नामलाईयार मंदिर से जुड़ी हैं। इनमें ध्यान, जप, और पूजा, या अनुष्ठान प्रसाद शामिल हैं। कई लोग भगवान अन्नामलाईयार का आशीर्वाद लेने और कठिनाइयों का निदान पाने व अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इस मंदिर में आते हैं।

-डॉ एस मुत्तु कुमार
 एसोसिएट प्रोफेसर
 हिन्दी विभाग
 वेल टेक कला महाविद्यालय
 अवाडी, चेन्नई -54
 ई-मेल: drmuthu_s@yahoo.com

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