बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
 

नित नई नाराज़गी... | ग़ज़ल (काव्य)

Author: प्राण शर्मा

नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं

दिल्लगी जिन्दादिली से कीजिए
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं

एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं

ज़िंदगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िंदगी अच्छी नहीं

मुस्कुराओ कुछ तो जीवन में कभी
हर घड़ी संजीदगी अच्छी नहीं

'प्राण' मिलते हैं कहाँ ये रोज़-रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं

-प्राण शर्मा

*ब्रिटेन निवासी प्राण शर्मा का नाम आप्रवासी ग़जलकारों में अग्रणी रहा है।

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