मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
 

ये मत पूछो... (काव्य)

Author: प्रदीप चौबे

ये मत पूछो कब होगा
धीरे-धीरे सब होगा

रोज़ खबर आ जाती है
अब होगा बस अब होगा

सरकारी है काम तेरा
होना होगा तब होगा

कब सोचा था दंगों का
मज़हब एक सबब होगा

मकतल तक ले जाए जो
वो कैसा मज़हब होगा

जिसका मज़हब कोई नहीं
वो इनसान अजब होगा

मेरा यह सब कहने का
कोई तो मतलब होगा

बेशक आज नहीं लेकिन
इक दिन गौर तलब होगा

-प्रदीप चौबे

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