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यह बता : एक प्रश्न (काव्य) |
Author: महेश भागचन्दका
तेरे पास क्या है
इससे जहाँ को सरोकार नहीं
तूने जहाँ के लिए किया क्या-- 'यह बता '
तू जी रहा है और जिए जाएगा, मगर
जाने से पहले क्या कर जाएगा-- 'यह बता '
जीवन का श्वासों से
श्वासों का क्रम से है इक नाता
इसके टूटने को बचा पाएगा क्या-- 'यह बता '
इतराना तेरी नहीं समय की ताक़त है
समय बदला तो क्या तू इतरा पाएगा-- 'यह बता
हम अपनी हस्ती को साथ लिये घूमते हैं
मस्ती में चूर हम जहाँ को भूलते हैं
ठुकराना हमारी आदत सी हो गई है
पर जहाँ की इक ठोकर को
हममें से कोई भी क्या सँभाल पाएग-- 'यह बता '
-महेश भागचन्दका
(बोलती अनुभूतिया, प्रभात प्रकाशन)