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आने वाले वक़्त के (काव्य) |
Author: कंवल हरियाणवी
आने वाले वक़्त के आसार देख
आँख है तो वक़्त के उस पार देख।
बेवफा लोगों का यह बांका चलन
पीठ पर करते हैं कैसे वार देख।
कल की बासी सुर्खियों पर इक नज़र
गौर से अब आज का अख़बार देख।
मुस्कुराहट में छुपी है तल्ख़ियां
राख की परतों तले अंगार देख।
फिर करेंगे इस निजाम-नौ की बात
लूटता है घर को पहरेदार देख।
ज़िदगी के इस चलन में हर तरफ
फूल के सीने में उगता ख़ार देख।
झील में जब मुस्कुराता है कमल
उसकी जानिब प्यार से इक बार देख।
- कंवल हरियाणवी