बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
 

तड़पते दिल के लिए (काव्य)

Author: उपेन्द्र कुमार

तड़पते दिल के लिए कुछ क़रार ले आए
कहीं से प्यार की ख़ुशबू उधार ले आए

तरस गए थे फक्त हम भी ग़म की चोटों को
किसी के वादे पे फिर एतबार ले आए

उदासियाँ बड़ी पतझड़ की तरह छाई थीं,
किसी की याद से दिल में बहार ले आए

वो बेबसी थी जो मौजों से डर के बैठ गई
ये हौसले थे जो दरिया के पार ले आए

कभी जो घर के अँधेरों में ढक गई थी 'उपेन्द्र'
पलक पे अश्क सजाए निखार ले आए।

-उपेन्द्र कुमार

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