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शक के मुंह में | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: अजहर हाशमी
शक के मुंह में विषदंत होता है,
शक से रिश्तों का अंत होता है।
भाव जितना हो दर्द में डूबा,
गीत उतना रसवंत होता है।
आचरण जिसका हो बहुत पावन,
ऐसा व्यक्ति ही संत होता है।
कोई गाथा ऐसी भी होती है,
जिसका आदि न अंत होता है।
इतने चेहरों को औढ़ लेता है,
आदमी जब श्रीमंत होता है।
आँख के आँसू जब हो सम्मानित,
तब समझना बसंत होता है।
-अजहर हाशमी