भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

शराब (कथा-कहानी)

Author: अनिल कटोच

"बाबू! कुछ पैसें दे दो।”

".............................. ?

"बाबू! सुबह से रोटी नहीं खाई।"

"मैं भूखा मर जाऊँगा। मुझे कुछ पैसे दे दो।”

"...पर तेरे मुँह से तो शराब की गन्ध आ रही हैं।"

-अनिल कटोच

[फिर सुबह होगी]

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