भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

यह कैसा दौर है (काव्य)

Author: सोम नाथ गुप्ता

वो मिट्ठा ज़बान का
मैं कड़वा करेला
मैं कह दूँ खरी-खरी
वो करे झमेला

कौन जाने
किसके मन में है क्या
कोई क्या सोचे
कोई क्या तोले
हर कोई चाहता है
पर लूटना मेला

गर्दिशों का दौर है
हर तरफ़ शोर है
करे कोई और
भरता कोई और है

सितम पुरज़ोर है
मुफ़्लिस कमज़ोर है
दानिशमंद डरपोक है
मुँह खोले न कोई सामने
पीठ पीछे हर कोई शेर है
‘दीवाना’ कैसा यह दौर है
यह कैसा दौर है

-दीवाना रायकोटी
(सोम नाथ गुप्ता)


*शब्दार्थ :
झमेला=झगड़ा(dispute)
गर्दिश=दुर्भाग्य(misfortunes)
दौर=काल चक्र(periodicity)
सितम=अत्याचार (oppression)
पुरज़ोर=जोरदार(emphatic)
मुफ़्लिस= गरीब(poor)
दानिशमंद=बुद्धिमान(wise)

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