Important Links
मेरा सफ़र (काव्य) |
Author: संजय कुमार सिंह
जाह्नवी उसे मत रोको
जाने दो मेरी यादों के पार
वह एक लहर है, जो दूर तक जाएगी
बहती हुई इच्छाओं के साथ
उसे जाने दो!
मैं भी कब तक रुकूँगा
भावनाओं के तट पर?
मेरा अर्ध्य लो!
अगर वह मिले तो कहना
मैंने थोड़ा इन्तज़ार किया
और फिर लौट गया अपने भाव-लोक में
एक पूरी गंगा लेकर!
लहरों को गिनना किसी के बस में नहीं है गंगे
मैं तो बस तुम्हारे साथ बहना चाहता हूँ पुण्यभागे!
बहना ही जीवन है भागीरथी!
लोक से लोकोत्तर में नहीं
लोकोत्तर से लोक में ...
कितना महनीय है यह सुख
मम से ममेतर होने का सुख!
कोई कुछ कहे/कहीं रहे
आकर बहे समभाव से!
यह मेरा है, यह तेरा है
नहीं, नहीं,अब यह सब नहीं
या तो सब तेरा या तो सब मेरा
कहीं कोई अवरोध नहीं, रोक नहीं
तुम मुझमें बहो गंगे!
इसी तरह बहती रहो!
अहरह! निरंतर!! सजल रसधार बनकर!!!
संजय कुमार सिंह
प्रिंसिपल पूर्णिया महिला कॉलेज पूर्णिया-854301
ई-मेल : sksnayanagar9413@gmail.com