मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
 

बीरबल का सवैया (काव्य)

Author: बीरबल

जब दाँत न थे तब दूध दियो अब दाँत भये कहा अन्न न दैहै।
जीव बसें जल में थल में, तिनकी सुधि लेइ सो तेरी हूँ लैहै।
जान को देत अजान को देत, जहान को देत सो तोहूँ को देहैं।
काहे को सोच करे मन मूरख सोच करे कछु हाथ न ऐहैं॥

- बीरबल
* अकबर के नवरत्नों में बीरबल सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं।

[हिन्दी नीति काव्यधारा (1948), संपादन : डा० भोलानाथ तिवारी, प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद]

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