भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
 

कैसी लाचारी | हास्य-व्यंग्य (काव्य)

Author: अश्वघोष

हाँ! यह कैसी लाचारी
भेड़ है जनता बेचारी
सहना इसकी आदत है--
मुड़ती वहाँ, जहाँ जाती!

अनुशासन में पलती है,
झुंड बनाकर चलती है,
गड्डा है या खाई है--
इसको नजर नहीं आती!

आखिर यह कब चेतेगी,
और लीक यह टूटेगी,
राजभवन कुरसी सत्ता
सब इसकी ही है थाती !

-अश्वघोष

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश