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सत्य और असत्य (कथा-कहानी) |
Author: मुक्तिनाथ सिंह
मनुष्य की छाया मनुष्य से बोली, 'देखो! तुम जितने थे, उतने ही रहे, पर मैं तुमसे कितना गुना बढ़ गई हूँ।'
मनुष्य मुसकराया और बोला, "सत्य और असत्य में यही तो अंतर है। सत्य जितना है, जैसा है, वैसा ही जबकि असत्य छद्म और बल के सहारे घटता-बढ़ता रहता है।"
-मुक्तिनाथ सिंह