मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
 

हक़ | क्षणिका (काव्य)

Author: सुफला सेठी

रोशनी बेचने का हक़ ,
सबको नहीं मिला करता;
सूरज का मैं ,
नूर-ए-चश्म हो गया हूँ।

- सुफला सेठी 
  ईमेल: suflasethi@gmail.com

 नूर-ए-चश्म = आँख की रोशनी, लड़का, सुपुत्र, प्यारा बेटा, फ़र्ज़ंद, प्यारी बेटी

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