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झूठी प्रीत (काव्य) |
Author: एहसान दानिश
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
पापिन नगरी, काली नगरी,
धरम दया से खाली नगरी,
पाप से पलनेवाली नगरी,
पाप यहाँ की रीत।
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
फ़ानी है यह दुनिया,फ़ानी,
उठती मौजें, बहता पानी,
छोड़ भी इसकी राम कहानी,
किसकी हुई यह मीत?
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
मोह के दिन हैं, दुख की रातें,
लोभ के फंदे, पाप की घातें,
प्रेम के रस से ख़ाली बातें,
हार यहाँ की जीत।
जग की झूठी प्रीत है लोगो, जग की झूठी प्रीत!
-एहसान दानिश