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खुशामद (काव्य) |
Author: पं॰ हरिशंकर शर्मा
खुशामद ही से आमद है,
बड़ी इसलिए खुशामद है।
एक दिन राजाजी उठ बोले बैंगन बहुत बुरा है,
मैंने भी कह दिया इसी से बेगुन नाम पड़ा हैं,
फ़ायदा इसमें बेहद है,
बड़ी इसलिए खुशामद है।
दूजे दिन हुजूर कह बैठे, बैंगन खूब खरा है,
मैने भी झट कहा, इसी से उस पे ताज धरा है,
नही होती इसमें भद है,
बड़ी इसलिए खुशामद है।
यदि राजाजी दिवस कहे तो दिनकर हम दमका दें,
जो वे रात बतावें तो फिर, चन्दा भी चमका दें,
इसी से हँडिया खदबद है,
बडी इसलिए खुशामद है॥
पं॰ हरिशंकर शर्मा
[1957 के एक व्यंग्य का अंश]