हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
 

भला करके बुरा बनते रहे हम (काव्य)

Author: डॉ राजीव कुमार सिंह

भला करके बुरा बनते रहे हम
मगर इस राह पर चलते रहे हम

मेरे अपने मुझे इल्जाम देकर 
बढ़े आगे लगा बढ़ते रहे हम

जरूरत थी जहाँ पर रोशनी की
बने दीपक वहां जलते रहे हम

नहीं थे चाहते तुमको झुकाना
इसी कारण सदा झुकते रहे हम

तुम्हारा फैसला तो था सुरक्षित
तुम्हें फरियाद क्यों करते रहे हम

सज़ा उस ज़ूर्म की हमको मिली है
सदा जिस जूर्म को सहते रहे हम

जरूरी मौत है जीने की खातिर
हुआ मालूम तो मरते रहे हम

-डॉ राजीव कुमार सिंह

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