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शेर होकर भी--- (काव्य) |
Author: ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
शेर होकर भी भेड़िए के हवाले हुए हैं
वो ज़िन्दगी मुश्किल से संभाले हुए हैं,
शेर होकर भी भेड़िए के हवाले हुए हैं।
वो जब भी मुस्कुराएंगे फुफकार भरेंगे,
इतने सांप जो आस्तीन में पाले हुए हैं।
वो समझते नहीं ज़रा अंधेरे हैं दूर तक,
कब उनकी महफिलों में उजाले हुए हैं।
आज नहीं तो कभी तो नतीज़ा आएगा,
हम भी क़िस्मत का टॉस उछाले हुए हैं।
सहरा में नहीं तो भटकेंगे कहां जा कर,
जो शख़्स अपने घर से निकाले हुए हैं।
लगता है कोई अपना भूखा है शहर में,
हलक़ से उधर मुश्किल निवाले हुए हैं।
सभी दौड़ रहे हैं मंज़िल की जुस्तजू में,
कौन पूछता है कि किसके छाले हुए हैं।
आ जाओगे शहर की अगली कतारों में,
ये बताओ भवन के कितने माले हुए हैं।
तुम सियासी नहीं हो चलिए संभलकर,
ज़फ़र परिंदे भी आज फंदे डाले हुए हैं।
-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
ईमेल : zzafar08@gmail.com