मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
 

दो क्षणिकाएं (काव्य)

Author: विनोद बापना

माँ

व्यर्थ हे,
सारी पूजा-पाठ,
जब तक, उपेक्षित हे;
घर में - माँ।

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 दर्शन

नहीं होंगे शिव के दर्शन,
इन गुफाओ, शिवालयो में;
ना ही
दूध और दही को व्यर्थ करने में
बन गणपति जेसा पुत्र, तो
शिव स्वरूप-पिता,
पार्वती स्वरूपा- माँ,
घर में ही होंगे दर्शन।

- विनोद बापना
  ई-मेल:  shubhammarble@bsnl.in

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