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आह्वान (विविध) |
Author: अशफ़ाक उल्ला खाँ
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी ज़ुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की
है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे।
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।
दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं,
खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।
मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।
-अशफ़ाक उल्ला खाँ