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भारत माँ के अनमोल रतन (काव्य) |
Author: डॉ. कुमारी स्मिता
आज सस्मित रेखाएं,
खींची जो जन-जन के मुख पर
गर्व से आजाद घूमते
अधिकार है जिनका सुख पर!
उनके पीछे सोचा कभी क्या
किसकी शहादत रही होगी?
छलका देश प्रेम जिस प्राण में
गजब की चाहत रही होगी!
हिमालय के उतुंग शिखरों पर
तब परचम लहराता है।
जब-जब कोई माँ का लाल
वीरगति को पाता है!
उड़-उड़ कर धूल करेगी
विजय का उनको अभिषेक!
अमर रहेगी आत्मा उनकी
चमकेगी जीवन की रेख!
असीम में हो गए,
जो वीर अंतर्धान!
अमिट रहेगा इस विश्व में,
उन शहीदों का निर्वाण!
बिछते थे जिनकी राहों पर
दुश्मनों के असंख्य शूल
भारत माँ के चरणों में
जा गिरा वह सुंदर फूल!
हे शहीद! हे हिंद के लाल!
हे वीर! हे अमर जवान!
भारत माँ के अनमोल रतन!
तुझे शत्-शत् नमन्!
तुझे शत्-शत् नमन्!!
- डॉ. कुमारी स्मिता