देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

एक भारत मुझमें बसता है (काव्य)

Author: आराधना झा श्रीवास्तव

देश त्याग परदेस बसे
ये कह मुझ पर जो हँसता है
मैं जहाँ जाऊँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।

भारत से दूर भले हूँ पर
मन मेरा अब भी वही बसा,
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
तेरी माटी ने है मुझे रचा।
मेरी धमनी में, मेरी नस-नस में
गंगधार बन जो बहता है
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।१।।

मीलों की दूरी दिखती हो
दिल मेरा हिंदुस्तानी है,
ये हर प्रवास करने वाले
भारतवंशी की कहानी है।
भले पासपोर्ट का रंग बदले
दिल में तिरंगा मचलता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ,
एक भारत मुझमें बसता है।।२।।

जश्न-ए-आज़ादी का ये दिन
बचपन की याद दिलाती है,
जय हिंद, जय भारतमाँ कहकर
छोटी बच्ची चिल्लाती है।
उस नन्हीं हथेली पर रखी
बूँदी को मन तरसता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।३।।

तू ईद मेरी, मेरी होली तू
मेरी पूजा और अज़ान मेरी।
दिल धड़कन मेरी जान है तू
बिन तेरे क्या पहचान मेरी।
मेरे मन के इस आंगन में जो
तुलसी बनकर महकता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।४।।

ये कतरा कतरा ख़ून मेरा
तेरे कर्ज़ में डूबा डूबा है,
ये ख़ुशबू तेरी माटी की
माँ अलग है, एक अजूबा है।
वीर सपूतों के माथे जो
चंदन बन चमकता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।५।।

ये वीर सपूतों की धरती
गाँधी और बुद्ध बनाती है।
ज्ञान-योग की आभा से
दुनिया को राह दिखाती है।
पाठ अहिंसा का ये जग
जिस शांति-गुरू से पढ़ता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।६।।

ऐ मेरे वतन, ऐ हिंद मेरे
तू ख़ुश रहे, आबाद रहे,
लहराए दुनिया में परचम
हिंदोस्तां ज़िंदाबाद रहे।
हिम के उत्तंग शिखरों पे जब
केसरिया रंग दमकता है।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।।७।।

-आराधना झा श्रीवास्तव, सिंगापुर
ई-मेल : jhaaradhana@gmail.com

विशेष: इस रचना का वीडियो यूट्यूब पर देखें -आराधना झा श्रीवास्तव की प्रस्तुति।  

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