Important Links
गठरी में ज़रूरत का ही सामान रखियेगा | ग़ज़ल (काव्य) |
Author: ज़फ़रुद्दीन "ज़फ़र"
गठरी में ज़रूरत का ही सामान रखियेगा,
तुम सफ़र ज़िन्दगी का आसान रखियेगा।
सब लोग तुम्हें याद करें मरने के बाद भी,
तुम इतनी तो ज़माने में पहचान रखियेगा।
अगर मन नहीं रुकता जंगल के सफ़र से,
अपने साथ में अपने तीर कमान रखियेगा।
अब हर रोज़ बदल रहे हैं क़ानून मुल्क के,
हिफ़ाज़त से रहो जो खुले कान रखियेगा।
मैंने अभी सुना है फिर आएगा ज़लज़ला,
दोनों हाथों से पकड़ कर छान रखियेगा।
अमीरे शहर को चाहिए तोहफ़े में शहादत,
हर पल हथेली पर अपनी जान रखियेगा।
मतलब नहीं है इसको मज़हब से ज़ात से,
हिन्द के तिरंगे को अपनी शान रखियेगा।
जब भी जाओ उसपार दरिया को चीरकर,
कश्तियों पर बैठने का अहसान रखियेगा।
यहां कोई नहीं जानता आंसुओं की क़ीमत,
तुम ग़म में भी चेहरे पर मुस्कान रखियेगा।
तुम मुहाजिर नहीं हो, बाशिंदे हो मुल्क के,
हाल कुछ हो आईन का सम्मान रखियेगा।
'ज़फ़र' दुश्मन के हौंसले बढ़ जाएंगे वरना,
अपने ही क़ब्ज़े में घाटी गलवान रखियेगा।
-ज़फ़रुद्दीन "ज़फ़र"
एफ-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
ई-मेल : zzafar08@gmail.com