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स्वीकार करो (काव्य) |
Author: रूपा सचदेव
मैं जैसी हूँ
वैसी ही मुझे स्वीकार करो।
इस पार रहो या उस पार रहो
ऐसे ही मुझे स्वीकार करो।
मैं जैसी हूँ
वैसी ही मुझे स्वीकार करो।
जो मेरा वजूद है दुनिया में
उससे न इनकार करो,
मैंने अपना सब कुछ वार दिया
अब इसपे क्यों तकरार करो।
मैं जैसी हूँ
वैसी ही मुझे स्वीकार करो।
मैं भोर की उजली लालिमा हूँ
मैं सावन की पहली बरखा में
प्रेम की पहली निशानी हूँ,
मुझको बस प्यार करो
दुनिया चाहे तो ठुकरा दे,
तुम बेशक
बाहों का हार करो।
मैं जैसी हूँ
वैसी ही मुझे स्वीकार करो।
-रूपा सचदेव, ऑकलैंड , न्यूज़ीलैंड