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कुमार नयन की दो ग़ज़लें (काव्य) |
Author: कुमार नयन
खौलते पानी में
खौलते पानी में डाला जायेगा
यूँ हमें धोया-खंगाला जायेगा
लूटने में लड़ पड़ें आपस में हम
इस तरह सिक्का उछाला जायेगा।
फिर मेरी मजबूरियों का देखना
दूसरा मतलब निकाला जायेगा।
एक मजहब के बताओ नाम पर
तख्त को कितना संभाला जायेगा।
कुछ अंधेरा हम भी लेकर घर चलें
तब कहीं घर-घर उजाला जायेगा।
मुझपे चलती हैं हथौड़ी छेनियां
मुझमें कोई अक्स ढाला जायेगा।
फिर हमारी ज़िन्दगी का फैसला
कल के जैसे कल पे टाला जायेगा।
बकरियों-गायों को लेकर चल 'नयन'
अब यहां बाघों को पाला जायेगा।
-कुमार नयन
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खून से तर
खून से तर शरीर ज़िंदा है
मेरा ज़ख़्मी ज़मीर ज़िंदा है।
वहां पांखड चल नहीं सकता
जहां कोई कबीर ज़िंदा है।
है हुक़ूमत तो मुफ़लिसी की मगर
मुल्क का हर अमीर ज़िंदा है।
इक पियादा हो जब तलक ज़िंदा
तो समझना वज़ीर ज़िंदा है।
कोई इससे बड़ी तो खींचे अब
मेरी छोटी लकीर ज़िंदा है।
तेरी दुनिया में मर गयी होगी
मेरी दुनिया में हीर ज़िंदा है।
पूछियो मत फ़िराक़ ग़ालिब को
मेरी ग़ज़लों में मीर ज़िंदा है।
-कुमार नयन
https://www.youtube.com/watch?v=CAsn6t7dMDg