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गुर्रमकोंडा नीरजा की कविताएं (काव्य) |
Author: गुर्रमकोंडा नीरजा
तीन शब्द
तीन शब्द----
हाँ! तीन ही शब्द
नफरत!
शक!!
डर!!!
बोए और काटे जा रहे हैं हर वक्त
रिश्तों की जड़ों में सींचकर ज़हर!
--- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
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खबरदार!
तुम रक्षक हो या भक्षक?
मासूमों की चीख सुनकर भी
तुम्हारे कण नहीं खुलते!
कब तक बहलाओगे
झूठी कहानियों से?
शिकारी को छोड़कर
शिकार को लूट रहे हो !
इन्साफ माँगने वालों को सजा दे रहे हो?
सारे शिकार एकजुट हो रहे हैं,
तुम्हारे खिलाफ बगावत तय है!
- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह-संपादक 'स्रवंति'
असिस्टेंट प्रोफेसर