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आत्मा की फांक (काव्य) |
Author: चरण सिंह अमी
"जो नहीं हैं मेरी बात से सहमत,
वे हाथ उठाकर
सहमति दें अपनी
कि, हाँ नहीं हैं वे सहमत।"
मेरी इस अपील पर
सभागार में छा गया सन्नाटा।
मैंने देखा,
धीरे-धीरे उठा रहा हूँ
मैं
अपना हाथ।
- चरणसिंह अमी
[अपूर्व अचम्भे की तरह]