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एक दरी, कंबल, मफलर (काव्य) |
Author: अशोक वर्मा
एक दरी, कंबल, मफ़लर, मोजे, दस्ताने रख देना
कुछ ग़ज़लों के कैसेट, कुछ सहगल के गाने रख देना
छत पर नए परिंदों से जब खुलकर बातें करनी हों,
एक कटोरे में पानी, दूजे में दाने रख देना
प्यार से तुम बच्चों को रखना, और अगर वे रूठे तो,
नन्ही परियों के कुछ किस्से नए-पुराने रख देना
घर में आए मेहमानों को घर-सा ही आराम मिले,
उनकी खातिर सब चीज़ों को ठौर-ठिकाने रख देना
हर पल खुशबू से चहकेगा, करते रहना इतना बस
परेशान चेहरों के लब पर कुछ मुस्कानें रख देना
-अशोक वर्मा
[साभार: दूसरा ग़ज़ल शतक, किताबघर प्रकाशन]