जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 

एक बैठे-ठाले की प्रार्थना  (काव्य)

Author: पं० बदरीनाथ भट्ट

लीडरी मुझे दिला दो राम,
चले जिससे मेरा भी काम।
कुछ ही दिन चलकर दलदल में फंस जाती है नाव,
भूख लगे पर दूना जोर पकड़ते मन के भाव--
कि मैं भी कर डालूँ कुछ काम,
लीडरी मुझे दिला दो राम ॥1॥

हिन्दू-मुस्लिम-प्रेम-भाव का करूँ गर्म बाजार,
देश-भक्ति का मेरे ही सिर रख दो दारमदार--
लगा दूँ लेक्चरों का लाम,
लीडरी मुझे दिला दो राम ॥2॥

धर्म कर्म की धूम मचाकर कलि को कर दूँ चूर,
पृथ्वी पर ही स्वर्ग दिखा दूँ, करू दिलद्दर दूर--
दाम के दाम, नाम का नाम !
लीडरी मुझे दिलो दो राम ॥3॥

- पं० बदरीनाथ भट्ट
  [1924]

 

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