जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 

छोटा बड़ा (विविध)

Author: प्रेमनारायण टंडन

एक विशाल वृक्ष की छाया से हटकर मैं खड़ा था और मेरे हाथ में एक सुंदर, छोटा आईना था ।

मैं यह देखकर चकित रह गया कि वह विशाल वृक्ष उस छोटे आईने में एक अंगुल के बराबर भी नहीं था।

X X X

कवि ने वृक्ष देखा और देखा उसके प्रतिबिंब को। उसके मन में एक प्रश्न उठा--जो हमें इतना छोटा दीखता है, क्या वह वस्तुतः इतना महान् भी हो सकता है ?

- प्रेमनारायण टंडन

 

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